Wednesday, March 6, 2019

अंत की तरफ बढ़ता पाकिस्तान

1971 में जब बांग्लादेश अलग हुआ तो मैं मात्र 4 महीने का था पर जैसे जैसे बड़ा हुआ तो पता चला कि हिंदुस्तान चारो तरफ से दुश्मनो से घिरा है । पूर्व में चीन, पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर में अफ़ग़ानिस्तान और दक्षिण में हमारे अपने लोग जो भाषा के नाम पर देश के ही विरुद्ध थे । कालांतर में बाकी सारी समस्याएं सुलझती दिखी पर पाकिस्तान और चीन की तरफ से हमेशा ही देश की अस्थिर करने की साजिशें चलती ही रहती थी । इन समस्याओं के मूल में जाने का प्रयास किया तो पाया कि व्यक्तिगत अहंकार का परिणाम है ये समस्याएं जो अब राष्ट्रों के आर्थिक और सामरिक अंत तक जा पहुंची है । में आपको 1965 में ले जाता हूँ । 1965 के युद्द में मिली करारी हार से पाकिस्तान बौखला गया था । ये कश्मीर को हासिल करने का उसका दूसरा विफल प्रयास था । इसी बौखलाहट के बाद देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक और झटका देते हुए पाकिस्तान के दो टुकड़े करके एक नए मुल्क बांग्लादेश को अस्तित्व में ला दिया था । अब पाकिस्तान के लिए भारत को बर्दाश्त करना अति कठिन हो चला था । और इस पर भारत ने परमाणु परीक्षण करके ये भी सिद्ध कर दिया था कि अब उस से सीधी लड़ाई नहीं की जा सकती । इंदिरा गांधी के रहते कुछ भी कहना मुश्किल था । वो कभी भी कुछ भी कदम उठा सकती थी । पाकिस्तान को हर हाल में खुद को परमाणु हथियारों से सम्पन्न देश के रूप मे स्थापित करना था। जनरल जिया उल हक साफ कह दिया था कि सुखी रोटी खाएंगे पर बम ज़रूर बनाएंगे। शीत युद्ध के इस काल मे अमेरिका रूस को अफ़ग़ानिस्तान से बाहर करने के लिए रणनीतिक साझेदार ढूंढ रहा था । 1971 में भी अमेरिका ने पाकिस्तान की सहायता करने का प्रयास किया था ।पर वो सीधे तौर पर रूस से युद्ध नही कर सकता था इस से विश्वयुद्ध का ख़तरा था । उसने पाकिस्तान को छद्म युद्ध करने के लिए तैयार किया । आर्थिक बदहाली से त्रस्त पाकिस्तान की तो लॉटरी निकल आयी । उसे अमेरिकी हथियारों का बड़ा ज़खीरा मुफ्त में मिलने लगा अरबों डॉलर की मदद मिलनी शुरू हो गई । चरमपंथियों के साथ साथ उनके सैनिकों की ट्रेनिंग भी होनी शुरू हो गई । जनसंख्या के अनुपात से ज्यादा पैसा आने से पाकिस्तान के लोगो का लीविंग स्टैंडर्ड चीन और भारत से कही आगे चला गया । 1978 से 1989 का दौर पाकिस्तान के लिए स्वर्णिम दौर कहा जा सकता है । अमेरिका ने दिल खोल कर दौलत लुटाई । 1989 में रूसी सेना अफ़ग़ानिस्तान छोड़ कर चली गयी । ये पाकिस्तानी सेना की बडी विजय थी । उसने विश्व की एक महाशक्ति को हराया था जिसे परोक्ष युद्ध मे जीतना अमेरिका के लिए भी असंभव था । एक दो महीने के जश्न के बाद अफ़ग़ानिस्तान से फ्री हुए आतंकवादियों के लिए नई टास्क ढूँढनी थी । तब उसे कश्मीर फिर याद आया । इंदिरा गांधी के निधन के बाद भारत मे कोई ऐसा नेता नज़र नही आ रहा था जो अमेरिका के सामने खड़ा हो सके सोवियत रूस विखंडित हो चुका था और 1990 में उसने इस्लामी कट्टरपंथी गुटो को अपनी आज़माई रणनीति के तहत कश्मीर में झोंक दिया और इसके तहत सबसे पहले कश्मीरी पंडितों को मार कर भगाया। कमज़ोर सरकार और नेता कुछ नही कर सके ।कश्मीर के कुछ रसूखदार लोगों को उसने पैसे के बल पर अपनी तरफ खींच लिया उन्हें लालच दिया गया आज़ाद कश्मीर के रहनुमा बनाने का और यही से उसकी बर्बादी का खेल शुरू हो गया । जो आतंकवादी सत्ता के खेल का हिस्सा नही थे उन्होंने पेशेवर लड़ाकों के रूप में पैसे के बादले लड़ना शुरू किया और कश्मीरी औरतों बच्चो के साथ अत्याचार करना शुरू कर दिया । सेना के हवाले होने से और स्थानीय लोगो को मदद नही मिलने के कारण उनका खात्मा होने लगा । अमेरिका भी अब उस तरह की मदद नही कर पा रहा था जो उसने रूस के खिलाफ जंग में कई थी । पाकिस्तानी आतंकवादियों में अब अमरिका द्वारा दिये गए धोखे से उसके खीलाफ़ माहौल बनने लगा। आतंकवाद को पालने में अमेरिका की मदद कम पड़ने लगी तो देश की अर्थव्यवस्था जो मात्र अमेरिकी मदद पर टिकी थी चरमरा गई । कश्मीर में पैसा कम जाने लगा । तो ये लड़ाई ढीली पड़ गई । पर कुछ भी रोका नही जा सकता था । अमेरिका के रवैये से तंग आतंकवादियों ने उस पर ही हमला कर दिया । अपनी धाक बनाये रखने के लिए उसने अफ़ग़ानिस्तान पर हमला बोल दिया।अब उसे पाकिस्तान की फिर ज़रूरत पड़ी । भूख के कगार पर खड़े पाकिस्तान के पास कोई चारा नही था इसके अलावा। इस बार उसकी इस नीति से कुछ आतंकवादी संगठन जिनको मदद मिलनी वंद हो गई थी उसके ही खिलाफ हो गए । वैश्विक मंदी , बाध्य घाटा और जितना पैसा आये आतंकवादी संगठन के लिए खर्च । देश टूटने के कगार पर खड़ा है। आतंकवाद के कारण कोई देश पैसा लगाने का इच्छुक नही है। पाकिस्तान ने पैसों और वहां के नेताओ की व्यक्तिगत महत्वाक्षाओ के कारण आतकंवाद को ही वहाँ का मुख्य व्यापार बना लिया था और वो व्यापार अब इतना फैल गया है कि फल देने लगा है । पाकिस्तान को हर तरफ से खाने लगा है परंतु फिर भी पाकिस्तान को ये समझ नही आरही है वो सोचता है कि इसके जरिये लड़ाई सस्ती पैड रही है । उसे ये समझ मे नही आ रहा कि देश का विका शांतिकाल में ही होता है युद्धकाल में विनाश ही होता है और आतंकवाद के रहते शांतिकाल संभव ही नही है । आप यदि निरंतर युद्ध मे रहोगे तो विकास संभव ही नही और ना ही विश्व का विश्वास । जिस तरह के गड्ढे में पाकिस्तान गिर चुका है उसे कोई अन्य या स्वयं चाह कर भी नही निकाल सकता । उसका अंत अब लगभग निश्चित है ।

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